मार्किट में सभी भागीदार अलग-अलग स्टाइल लेकर आते है. जिस तरह वह लोग share market में समय बिताते है उसी तरह उनका स्टाइल भी बेहतरीन हो जाता है. उसके स्टाइल से ही पता चलता है की कोई व्यक्ति इतना रिस्क कैसे ले सकता है. सभी भागीदार या तो इन्वेस्टर की कैटेगरी में आते है या फिर ट्रेडर कैटेगरी में.
एक बेहतर ट्रेडर या इन्वेस्टर वह होता है जो सही मौके को पहचानता है और सौदा करता है उसे फायदा मिलते है सौदे से बहार हो जाता है. एक सही ट्रेडर ना नजरिया बहुत ही छोटे समय के लिए होता है. एक बेहतर ट्रेडर हमेशा चौकन्ना रहता है वह मार्किट पर नजर रखता है और सही मौके की तलाश में रहता है. और रिस्क (reward) यानि जोखिम से मिलने बाले फायदे का अनुमान लगाता है.
ट्रेडर मार्किट की मंदी या तेजी नहीं देखता है वह सिर्फ सही मौके को तलास करता है. ट्रेडर 3 तरह के होते है-
उदहारण –
वह TCS के 100 शेयर 3220 रूपए के भाव पर 10 मार्च को खारीदा और 12 मार्च को 3225 रूपए के भाव पर बेच देगा. दुनिया के कुछ मशहूर ट्रेडर हैं- जॉर्ज सोरॉस, पॉल ट्यूडॉर, एड सेयकोटा, वॉन के थार, स्टैनली ड्रकेन मिलर.
एक इन्वेस्टर वह होता है जो शेयर्स को मुनाफा होने की उम्मीद से खरीदता है की उसको इस सहारे में अच्छा मुनाफा होगा. वो अपने निवेश को अधिक समय तक रखने को तैयार रहता है जिससे उसे मुनाफा हो. एक इन्वेस्टर का होल्डिंग पीरियड कई सालों का भी हो सकता है.
निवेशक कितने प्रकार के होते है?
निवेशक 2 प्रकार के होते है –
- 1.ग्रोथ इंवेस्टर (Growth Investor)
- वैल्यू इंवेस्टर (Value Investor)
ग्रोथ इंवेस्टर –
इस तरह के इन्वेस्टर की हमेशा से यही कोशिश रहती है की इन्वेस्ट करने के लिए ऐसी कंपनिया तलाशी जाये जिसमें बढ़ने का मौका हो.
उभरती हुई इंडस्ट्री की वजह से या मौजूदा आर्थिक हालात की वजह से भारत में हिंदुस्तान यूनिलीवर, इंफोसिस, जिलेट इंडिया जैसी कंपनियों को 1990 में खरीदना इसका एक उदाहरण होता. इन कंपनियो ने तब से आज तक काफी ग्रोथ दिखाई है क्योंकि इनकी पूरी इंडस्ट्री में अधिक बदलाव आए हैं.
इस तरह की कंपनियो ने अपने शरेधारको को अधिक पैसा कमा कर दिया है.
वैल्यू इंवेस्टर (Value Investor क्या है) –
एक वैल्यू इन्वेस्टर की येही कोशिश रहती है की वह अच्छी कंपनियो को पहचाने और उनमे निवेश करे.
कंपनी अपने शुरुआती दौर में है या बाजार की जमी जमायी कंपनी है उसके लिए ये महत्वपूर्ण होता है. वैल्यू इन्वेस्टर हमेशा इस तरह की कंपनियो की तलाश में रहते है जो कि बाजार का मूड खराब होने की वजह से share की असली कीमत से निचे गिर रही हो.
उदाहरण –
जून – जुलाई 2015 में TCS का शेयर बुरी तरीके से गिरा ये ₹ 2500 से गिरकर 1200 रूपए तक पहुच गया था. ₹ 1200 के भाव पर (कंपनी के फंडामेंटल के मद्देनज़र) इसकी वैल्यूएशन काफी सस्ती थी. इसलिए शेयर्स खरीदने का अच्छा मौका था.
जिन investers ने उस समय शेयर्स को ख़रीदा था उनको इसका अच्छा इनाम भी मिला. क्योकि अप्रेल 2017 में 1200 रूपए से 2900 तक पहुच गया. कुछ नामी गिरामी वैल्यू इन्वेस्टर के नाम हैं- चार्ली मंगर, पीटर लिंच, बेंजामिन ग्राहम, वॉरेन बफेट, थॉमस रो, जॉन बोगल, जॉन टेम्प्लटन आदि.
इस जानकारी को जरुर पढ़े –
- Share/Stock market वो जगह है जहाँ पर कोई भी इन्वेस्टर/ट्रेडर शेयर्स को खरीद और बेच सकता है.
- इस मार्किट में बेचने और खरीदने बाले इलेक्ट्रॉनिक्की तरीके से सौदा करते हैं.
- इस मार्किट में तरह-तरह के बिचारो और नज़रिया रखने वाले लोग होते हैं.
- स्टॉक एक्सचेंज ये सुविधा देता है जिससे खरीदने और बेचने बाले आपस में मिल सके.
- तरह-तरह की घटनाएं और समाचार, शेयर की कीमत को प्रतेक ऊपर – नीचे करते हैं.
- मांग और आपूर्ति के कारण शेयर की कीमत ऊपर नीचे होती रहती हैं.
- किसी भी कंपनी के share खरीदने के बाद, आप कंपनी से बोनस, डिविडेंड, राइट्स जैसी सुविधाएं भी पा सकते हैं.
- होल्डिंग पीरियड (Holding Period) का मतलब है की आप उस share को अपने पास कितने दिन तक रखते है.
- जब होल्डिंग पीरियड एक साल या उससे कम हो तो आपको कुल रिटर्न देखना चाहिए और अगर होल्डिंग पीरियड कई सालों का है तो आपको CAGR रिटर्न देखना चाहिए.
- ट्रेडर और इंवेस्टर में दो बड़े अंतर होते हैं – रिस्क लेने की क्षमता और होल्डिंग पीरियड.